Saturday, January 31, 2015

''ब्लैकहोल''


ओ ! मेरी  कहकशां, 
तुमको ढुंढू मै कहाँ-कहाँ  
कितना भी मै डूब जाऊ 
तुझको छू न पाऊ !
प्रकाश की गति 
से भी तेज़,मन तुम्हारा 
छोड़ जाता है मुझको बेसहारा,
 और फिर जब खुलता है,
आकाशगंगा का ये पिटारा;
तो बस मै गिरता जाता हूँ 
केवल  गिरता जाता हूँ
उसी काली ब्लैकहोल में ,
जहाँ से कभी कोई
वापस नहीं लौटा,
यहाँ तक कि समय भी नहीं।

                        -कृष्णा मिश्रा 
                          ३१ जनवरी १५ 



Friday, January 30, 2015

कल रात बड़ी खूबसूरत बात हुई
बड़े दिनों बाद मेरे घर बरसात हुई।

बरसों से पत्थर हुयी आँख हस पड़ी
बड़े अर्से बाद थी अपनी मुलाकात हुई।

लिपटकर तुझसे मै खूब रोया
कोई बात बढ़कर जज्बात हुई।

                          --जान
          पुरानी डायरी के झरोखे से

                       20 मार्च 06